संजीवनी बूटी

श्रेया और श्रुति दोनों सगी बहनें थीं, पर बिल्कुल अलग प्रकृति की। श्रेया धीर गंभीर साधारण व्यक्तित्व और अंतर्मुखी स्वभाव की थी, वहीं श्रुति चपल, चंचल, गोरी और वाचाल थी। कोई भी देखता तो विश्वास ही नहीं करता कि दोनों सगी बहनें हैं।

आज घर में मंगलोत्सव का सा माहौल था। नीलिमा मौसी जो आ रही थीं। सबकी चहेती थीं नीलिमा मौसी। घडी में पांच बज रहे थे। थोडी ही देर में कार का हॉर्न सुनाई दिया। पापा और भैया उन्हें लेकर आ चुके थे। हमेशा की तरह अपनी मुस्कराहट की चांदनी बिखेरती नीलिमा मौसी कार से उतरीं। 'नीलिमा तुम्हें किसी की नजर न लगे, लेकिन तुम पहले से मोटी हो गई हो,' मम्मी ने बोल ही दिया। 'वो क्या है न दीदी खाना बनाने के बाद सबसे पहले मैं खाती हूं, जो बचता है, बाकी सब उसी से काम चला लेते हैं।' और ड्राइंगरूम ठहाकों से गूंज उठा।

सबके हालचाल पूछकर मौसी फ्रेश होने चली गई। आज किचन में मम्मी ने भी नाश्ते की तैयारी पहले से कर रखी थी। श्रेया और श्रुति भी मम्मी की मदद करने में जुट गई। राजन भैया जो नाश्ते के समय टेबल पर हडबडी मचाकर मम्मी को परेशान करते थे, आज शांतभाव से नाश्ते का इंतजार कर रहे थे। मौसी नहाकर आ चुकी थीं। सब साथ मिलकर नाश्ता करने बैठे। नीलिमा मौसी इस बात को नोटिस कर रही थीं कि श्रुति हर बात का तपाक से उत्तर देती है, वहीं श्रेया कुछ चुप-चुप रहती है।

शाम को जब सबने न्यू मार्केट जाने का प्रोग्राम बनाया तो सब तैयार थे, पर श्रेया नहीं। 'क्यों श्रेया तुम बाजार नहीं चल रही हो' मौसी ने पूछा। 'नहीं मौसी आप लोग हो आइए, मुझे नोट्स तैयार करने हैं।' 'ठीक है।' और सब लोग चले गए। अगले दिन श्रेया कॉलेज से लौटी तो देखा मम्मी-पापा के साथ बैंक गई हुई थीं और मौसी उसके कमरे में बैठी उसकी डायरी पढ रही थीं, जो वह गलती से स्टडी टेबल पर खुली छोड गई थी।

'सॉरी श्रेया किसी की डायरी नहीं पढनी चाहिए, लेकिन तुम्हारी डायरी खुली हुई थी और इतनी अच्छी चीज सामने हो तो उसे पढे बिना रहा नहीं गया। ये सब तुमने लिखा है!' 'हां मौसी।' 'अच्छा, हमें तो पता ही नहीं था हमारी श्रेया इतनी होशियार है।' 'अच्छा ये बताओ तुम इतनी गुमसुम क्यों रहती हो कल तुम हमारे साथ बाजार भी नहीं गई।' 'मौसी ऎसी शॉपिंग का क्या फायदा, जहां अपनी चॉइस की कोई अहमियत ही न हो। हर बार यही होता है। कोई भी चीज खरीदनी हो तो मुझे अनदेखा करके मम्मी श्रुति की ही बात मानती हैं। बात कोई भी हो मुझे ही चुप करवा दिया जाता है।'

श्रेया ने कई कटु अनुभवों को अपने दिल की गहराइयों में दफन कर रखा था, जो रह-रह कर जीवंत होने लगे और मौसी को अपने दिल के करीब पाते ही जैसे एक धधकता ज्वालामुखी फट पडा था। 'मौसी आप जानती हैं! कोई मुझे पसंद नहीं करता। मैं सुंदर नहीं हूं न। एक नहीं, कई-कई बार मैंने उपेक्षा के कडवे घूंट पिए हैं।'

बोलते-बोलते श्रेया का स्वर रूंध गया था। आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड आया था, जिन्हें रोकने का असफल प्रयास जारी था। 'अरे पगली इतनी आग तुम अपने अंदर समेटे बैठी हो। पहले ये बताओ कि किसने कहा तुम सुंदर नहीं हो सुंदरता तो देखने वालों की निगाहों में होती है।' 'हर किसी की आंखें आपकी तरह पारखी नहीं होतीं मौसी।' 'वो लोग नासमझ होते हैं, जो बाहरी सुंदरता को देखते हैं। मन की सुंदरता को नहीं देख पाते।

एक बात बताओ श्रेया, कोई सुंदर है या नहीं ये तो प्रकृति की देन है, इसमें उस व्यक्ति का कोई हाथ नहीं उसे शाबासी किस बात की। शाबासी तो उसे देनी चाहिए जो सुंदर न होते हुए भी अपने अंदर छिपी प्रतिभा और गुणों का विकास करके खुद को इतना आत्मविश्वास से भर ले कि उसके अंदर का तेज उसके चेहरे पर प्रतिबिंबित होने लगे। लता मंगेशकर, ओमपुरी, नाना पाटेकर, रघुवीर यादव, नसीरूद्दीन शाह वगैरह-वगैरह न जाने कितने लोग सुंदर न होते हुए भी सुंदर हैं, मशहूर हैं, अपने गुणों की वजह से। आज जमाने के साथ चलना बहुत जरूरी है श्रेया। डार्विन का 'सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट' तो तुमने साइंस में पढा ही होगा। 

तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है कि कौन क्या कहता है, उसके बारे में ज्यादा मत सोचो। निराशा और उदासी को उतार फेंको और फिट रहो। तुम्हारी बातों से लगता है तुम्हारे मन में अपनी मम्मी से भी नाराजगी है। श्रेया कोई भी मम्मी ऎसी नहीं, जो अपने बच्चों को पसंद न करे। ये तुम्हारे मन का भ्रम है। जीवन में सकारात्मक नजरिया रखो, फिर देखो कमाल। अच्छा अब ये आंसू पोंछो, अब अगर तुम मुझे उदास दिखाई दीं तो देखना। और हां तुम जो कविताएं या कहानियां लिखती हो वो पत्रिकाओं में भेजो।' 

आज श्रेया अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रही थी, जैसे इतने समय से अपने दिल पर एक शिला का भार वहन करने का श्राप लिए जी रही थी और आज मौसी उस श्राप मुक्ति का जरिया बनकर उसके सामने आई थीं।  रात के खाने के बाद मौसी मम्मी के साथ लॉन में बैठी थीं। श्रेया के कमरे की खिडकी पास ही थी। श्रेया को उनकी बातें साफ सुनाई दे रही थीं। 'दीदी आप बुरा न मानो तो एक बात कहूं। 

आप श्रेया को अंडरएस्टीमेट करती हैं। सबकी उपेक्षा के कारण उसकी पर्सनेलिटी दब रही है। उसे बोनसाई मत बनाओ दीदी। जानती हूं, आप उसे श्रुति की तरह स्मार्ट देखना चाहती हैं। उसे प्यार दीजिए, आत्मविश्वास जगाने में मदद कीजिए। उसकी तुलना मत कीजिए, उसे अपने साथ बाहर लेकर जाइए। दुनियादारी सीखने दीजिए।'
'शायद तुम ठीक कह रही हो नीलिमा। मैंने इस ओर अभी तक ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया। ज्यादा टोकाटाकी और महत्वाकांक्षा ने मेरी सोच का दायरा छोटा कर दिया।' और वो दिन आ ही गया जब नीलिमा मौसी अपने घर लौट जाने वाली थी। सबसे ज्यादा दुख श्रेया को हो रहा था उनके जाने का। श्रेया का उदास चेहरा देखकर मौसी बोलीं, 'मैंने क्या कहा था याद है!' और श्रेया मुस्करा दी। 

मौसी के जाने के बाद उसने अपनी कहानी पत्रिका में भेज दी। घर में उसके प्रति मम्मी का और बाकी सभी का व्यवहार सकारात्मक लग रहा था। कुछ दिन बाद जब उसकी कहानी पत्रिका में छपी तो मम्मी अपने फ्रेंड सर्कल में और परिचितों को बताते हुए गर्व अनुभव कर रही थीं कि उनकी बेटी की कहानी छपी है। उसके जीवन के सूने कैनवस में खुशियों के रंग भरने लगे, जिसके लिए वह तडप रही थी। खोया आत्मविश्वास जगाने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण की संजीवनी बूटी जो दे गई थीं मौसी।