ऋषि अंगिरा के शिष्यों में एक था उदयन। वह काफी प्रतिभाशाली था पर उसमें विनम्रता की कमी थी। वह हर समय अपने गुणों का बखान करता और अपने सहपाठियों पर रोब जमाता था। ऋषि ने सोचा कि समय रहते इसे न समझाया गया तो यह लक्ष्य से भटक जाएगा।
ऋषि ने समझाया, 'देखो, तुम चाहे जितने तेजस्वी हो, पर इस कोयले जैसी भूल मत कर बैठना। यह कोयला अंगीठी में सब के साथ रहता तो अंत तक तेजस्वी बना रहता और सबको गर्मी देता रहता। पर अब तो इसकी चमक नहीं रही। अब हम इसकी तेजस्विता का लाभ नहीं उठा सकेंगे। परिवार वह अंगीठी है जिसमें प्रतिभाएं संयुक्त रूप से तपती हैं। व्यक्तिगत प्रतिभा का अहंकार न टिकता है, न फलित होता है। परिवार के साथ रहने में ही वास्तविक बल है।' उदयन को अपनी भूल का अहसास हो गया।