चार आने जिंदगी......

रामचंद्र बाबू पेशे से वकील थे और उनकी वकालत भी काफी अच्छी चल रही थी। उन्हें अपने ज्ञानी होने का अहंकार भी था। एक बार उन्हें नदी पार कर किसी अन्य स्थान पर जाना था। एक नाविक से उनका सौदा पट गया। सो वे नाव में बैठ गए और नाविक नाव चलाने लगा। रास्ता जल्दी कट जाए इस लिहाज से परस्पर बातचीत होने लगी। पहले उन्होंने नाविक से उसका नाम, पता, आमदनी घर-बार इत्यादि के विषय में पूछा और फिर अपने प्रिय विषय शिक्षा पर आ गए।

उन्होंने नाविक से पूछा क्या तुम व्याकरण जानते हो? नाविक ने उत्तर दिया- नहीं बाबूजी। व्याकरण किसे कहते हैं? मुझे तो यही भी नहीं मालूम। रामचंद्र बाबू बोले- तुम्हारी चार आने जिंदगी बेकार हो गई। फिर उन्होंने प्रश्न किया क्या तुम्हें कविता आती है? नाविक के इंकार पर वे बोले फिर तो तुम्हारी आठ आने जिंदगी बेकार हो गई। थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछ अच्छा तुम्हें गणित की जानकारी तो होगी। नाविक के मना करने पर वे बोले- तब तो तुम्हारी बारह आने जिंदगी बेकार हो गई। 

उसी समय नदी में भयानक तुफान उठा और नाव डगमगाने लगी। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए नाविक नदी में कूद गया और तैरते हुए उसने रामचंद्र बाबू से पूछा आपको तैरना आता है? उन्होंने घबराते हुए नहीं कहा तो नाविक बोला तब तो आपकी सोलह आने जिंदगी नष्ट हो गई। इतने में नाव पलट गई और रामचंद्र बाबू डूबने लगे। तब उसी नाविक ने दया दिखाकर उनकी जान बचाई।

कथा का संदेश यही है कि जीवन की सार्थकता मात्र औपचारिक शिक्षा में ही निहित नहीं है। बल्कि व्यवहारिक ज्ञान का होना भी जरूरी है। क्योंकि कई महत्वपूर्ण अवसरों पर वह जीवन को संकट से बचाता है।