प्रार्थना करते देखा

दुनिया में दो तरह के लोग होते है अच्छे या बुरे, बस। 

इंसानों में बस इतना ही फर्क होता है, कोई हिन्दु, मुसलमान, सिख या ईसाई नहीं होता। आ॓शो भी कहते हैं मैं धार्मिकता सिखाता हूं धर्म नहीं। हमारा धर्म प्रेम करना है, परमात्मा को पाना हैं, मज़हब के नाम पर खून बहाना नहीं। 

धर्म एक आस्था है वो किसी के लिए भी हो सकती है। इसी सन्दर्भ में ये पंक्तियाँ गौर करने के काबिल है कि - 

रास्ते में, एक मासूम बच्चे को, मंदिर के सामने  हाथ उठा, प्रार्थना करते देखा हाथ ठीक वैसे ही जुड़े थे, जैसे खुदा की इबादत में होते हैं



क्या लोगों ने इसे, समझाया नहीं

भगवान- खुदा अलग है या यही, मासूमियत प्रेम है

भगवान है...

खुदा है...

जो आज इंसानो से जुदा है।