एक छोटी सी थैरेपी

चाहे देश हो, या लोग हो, या फिर अपना खुद का दिमाग ही क्यों ना हो सभी को एक छोटी सी थैरेपी की आवश्यकता हमेशा पड़ती है. मै ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज अंग्रेजी वाले साल २०१० में हम जितनी तेजी से तरक्की की और भाग रहे है उतनी ही तेजी से जो मुद्दे कुछ समय पहले तक तुच्छ हो चुके थे वो वापस अपना सर उठा रहे है जैसे की हम क्षेत्रवाद (महाराष्ट्र का मसला जहा की कुछ लोगो के द्वारा इसे देश से भी बड़ा समझा जा रहा है ), साम्प्रदायिकता (गुजरात का मुद्दा), भाषावाद (महाराष्ट्र का मसला), आरक्षण (राजस्थान में गुर्जर्वाद), नक्सलवाद (पश्चिम बंगाल का मुद्दा) आदि के मुद्दों में वापस उलझते जा रहे है. और इन सब की जल्द से जल्द एक बढ़िया थैरेपिस्ट दुन्दाना है जो की देश की थैरपी कर सके (अगर आप की निगाह में कोई हो तो देश के आला नेताओ से तुरंत सम्पर्क साधे या हमारे तेज तरार मिडिया से मुखातिब हो)

उसी प्रकार लोगो के लिए भी एक छोटी सी थेरेपी की जरूरत इसलिए है ताकी हम जो सारी समस्याये एक दूसरे पे थोपने के आदि हो चुके है उससे निजत पा सके और यह बिना एक छोटी सी थैरेपी के सुधर नहीं सकती .

सबसे बड़ा खिलाडी तो या अपना दिमाग महोदय है और अपने दिमाग की तो पूछिये ही मत यह तो बस ऐसे समझता है की सिकंदर भी इसके सामने अपना सर झुका ले . हम मजाक नहीं कर रहे है सारा का सारा दोष ही इन महाराज का है, क्योंकि समस्या हमेशा घर से सुरु होती है और अगर इस दिमाग महाराज को एक बढ़िया सी थैरेपी मिल जाए तो बस अपने आप सब कुछ ठीक हो जायेगा और किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. 

लेकिन असली समस्या तो यही है की भैया ये एक छोटी सी थैरेपी भला लगाये कौन ? क्या आप में है ऐसा जज्बा की आप अपने दिमाग की थैरेपी के साथ साथ सभी लोगो की थैरेपी भी करे और अपने इस महान देश को और भी महान बनाने के लिए फिर से एक मखमली रास्ता तैयार कर सके, जिस पर चलकर हम नाज से कह सके .............................. यह देश है हमारा,  नेता  है हम ही कल के . 
जय हिंद ! जय भारत !!!