एक बार फिर खो गया देश का सम्मान





भारत में क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसे यहाँ मंदिर की आरती, मस्जिद की नमाज, गुरूद्वारे की गुरुवाणी और चर्च की प्रार्थना के बराबर दर्जा मिला हुआ है लेकिन भारत की कल हुई हार के साथ भारतीय टीम का देश वापसी का टिकिट लगभग तैयार हो गया है और इसके साथ ही हमेशा की तरह फिर से वही बहस का विषय हमारे सामने आ खड़ा हुवा है की क्या वास्तव में हमारे प्लयेर इस खेल को खेल की तरह ही खेलते है या फिर इसे उसी तरह से एक ९ से ५ वाला धंधा मानते है जहा सिर्फ ड्यूटी महीने के अंत में मिलने वाली सैलरी (तन्खवाह) के लिए दी जाती है. कई प्लयेर तो ऐसे बेशरम है जिनके चेहरे पर खेल के दोरान और खेल के पश्चात भी लेश मात्र दुःख या शर्म की भावना नज़र नहीं आती है जो की उनकी देश के प्रति सोच को दर्शाती है. यह अमिट सत्य है की हम हमेशा खेल में विजय तो हासिल नहीं कर सकते परन्तु अंपने प्रदर्शन से देश की भावना का सम्मान तो कर ही सकते है. बस एक छोटी सी सोच की जरूरत है एक मुकाम हासिल करने के लिए और देश का खोया हुवा सम्मान वापिस हासिल करने के लिए ........................ जय हिंद ! जय भारत !!!