लैब में तैयार की गई 'देसी वायग्र

नपुंसकता, दिल की बीमारी, कैंसर, घुटने व पीठदर्द और बुढ़ापे की बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। इन बीमारियों के इलाज में बेहद असरदार जड़ी-बूटी को लैब में बनाने में सफलता मिल गई है। इसका प्रॉडक्ट 6 महीनों में मार्केट में उपलब्ध होगा। यह जड़ी बूटी है 'यारसा गुंबा', जो एक तेजी से खत्म हो रही स्पीशीज है और हिमालयी क्षेत्र में 11 से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर पाई जाती है। 

चीन के बाद भारत दूसरा देश बन गया है जिसने हिमालयी क्षेत्र की इस बेशकीमती जड़ी-बूटी को लैब में बनाने की तकनीक ईजाद की है। डिफेंस मिनिस्ट्री के तहत आने वाले डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) की पिथौरागढ़ इकाई ने 2 सालों की रिसर्च के बाद यह कर दिखाया। अब तक सिर्फ चीन में ही इससे बने प्रॉडक्ट मार्केट में मौजूद थे। 

क्या है यह जड़ी-बूटी? 
यारसा गुंबा एक इंसेक्ट का लार्वा है जिसमें फंगस लगा होता है, इसलिए इसे कीड़ा घास भी कहते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं के अलावा यह जड़ी-बूटी सिक्किम, हिमाचल और अरुणाचल प्रदेश के हाई एल्टिट्यूड इलाकों में भी होती है। चीन में अरसे से इसका इस्तेमाल दवा के तौर पर होता है और वहां के बाजार में इसकी जबर्दस्त मांग भी है। कम उत्पादन और जबर्दस्त मांग के चलते भारत से यह तस्करी होकर चीनी बाजारों में पहुंचती है, जहां इसकी कीमत प्रति किलो 25 लाख रुपये तक चली जाती है। 

कई रोगों का एक इलाज 
डीआरडीओ के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. पी. एस. नेगी की टीम ने इसे लैब में बनाया है। डॉ. नेगी ने बताया कि यारसा गुंबा की मेडिकल प्रॉपर्टीज फंगस में होती है। हमने इसे लैब में विकसित कर लिया है और इसकी सारी प्रॉपर्टीज नेचरल यारसा गुंबा जैसी हैं। हमने इसे पाउडर के रूप में भी बनाया है। 

एंटी एजिंग प्रॉपर्टी के अलावा यह कई तरह की बीमारियों में कारगर है और बेहद एनर्जेटिक है। मरीजों को मिलने वाले फायदे के अलावा लैब में इसे बना लेने का एक फायदा यह भी है कि यारसा गुंबा के दोहन को रोका जा सकेगा जो बायो डायवर्सिटी के लिए अच्छा है। डीआरडीओ के डायरेक्टर डॉ. जेड. अहमद ने बताया कि हमने यह टेक्नॉलजी दिल्ली की एक फर्म को दी है, जो 6 महीने के भीतर इसका प्रॉडक्ट मार्केट में लॉन्च कर देगी।