लिखना तो बहुत कुछ चाहा,
पर लिख ना सका था आज तक
पर लिख ना सका था आज तक
ना जाने क्यों आज दिल ने कहा,
कह डाल जो तेरे भीतर दफ़न था अब तक
चाह के भी बाहर ना आ सके थे जो विचार
उनको मिला कलम का सहारा, दिल में उठी एक बयार
इस ज़माने ने बहुत हंसी उड़ाई है तेरी,
अब तू भी थोडा सा हंस ले, इस ज़माने पर
कहते है, जहर को जहर मारता है,
तेरा भी जहर मर जायेगा इस कलम से
उठ खड़ा हो, कुछ कर दिखाने के लिए
करवट ले, ले थोड़ी सी उम्मीदों की सास
दिखा इस जमाने को, अभी बाकि है तुझमे आस
उठ और उठा इस कलम को कुछ पाने के लिए,
इस ज़माने के लिए
कलम हाथ में ली है कुछ कर दिखाने के लिए,
खोया हुआ अभिमान पाने के लिए ...
धर्मेन गोयल