कलर थैरेपी या रंगों का रोजगार


कलर थैरेपी के जरिए कई तरह की मानसिक व्याधियों के निदान में मदद मिल सकती है। आज यह थैरेपी कई क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही है। कई कारपोरेट कंपनियों की राय है कि खास तरह के माहौल में कर्मचारियों का प्रदर्शन बेहतर होता है। अस्पतालों व जेलों में भी क्रमश: मरीजों व कैदियों पर रंगों के प्रभाव को समझा जा रहा है। पेंट (रंगरोगन) कंपनियां भी रंगों के उपचारक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नए कलर कार्डस बाजार में पेश करने लगी हैं। 


क्या आपने कभी सोचा है कि शॉपिंग करते समय आपकी आंखें बार-बार एक ही रंग के अलग-अलग शेड्स पर आकर क्यों ठहर जाती हैं? क्यों आपको लाल रंग अमूमन पसंद नहीं आता और नीले रंग को देखकर शांति की अनुभूति होती है? क्यों पीला रंग देख आप खिल उठते हैं और बेड पर बिछी गुलाबी चादर देखकर दिन भर की थकान भी थोड़ी देर के लिए भूल जाते हैं? देखा जाए तो यह सब ‘कलर थैरेपी’ का ही एक हिस्सा है। यह ऐसी प्राचीन कला है, जिसे हम जाने-अनजाने अपने जीवन में लागू करते चले आ रहे हैं। 

कहा जाता है कि इस थैरेपी के विशेषज्ञ किसी व्यक्ति का ऑरा (आभामंडल) देखकर ही बता सकते हैं कि उसे कौन सा रंग पसंद है। कुछ देशों में तो व्यक्ति के ऑरा का अध्ययन करने के लिए आधुनिक तकनीक संपन्न मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो व्यक्ति की मानसिक व शारीरिक स्थिति की जांच के बाद इसके बारे में विस्तार से बताती हैं।

क्या है कलर थैरेपी?
वेदिक्योर वेलनेस सेंटर से जुड़े डॉक्टर अनिल पाटिल कहते हैं, ‘कलर थैरेपी रंगों के जरिए रोगोपचार करने का विज्ञान है। इसमें व्यक्ति के मेरुदंड के इर्द-गिर्द मौजूद मूलाधार चक्रों से उपजे लक्षणों पर गौर किया जाता है। गौरतलब है कि शारीरिक संतुलन में कुछ अनियमितताएं होने पर इन चक्रों में विकार नजर आने लगता है।’ कलर थैरेपिस्ट अमीषा मेहता बताती हैं, ‘इंसान के शरीर में सात चक्र होते हैं, जो इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह हैं। व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिहाज से जरूरी है कि यह चक्र भी घड़ी की तरह सुचारु रूप से चलते रहें। 

इनमें विकार आने का मतलब है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है।’ हालांकि कलर थैरेपी के मामले में पाटिल और मेहरा दोनों ही अलग-अलग थ्योरी को अपनाते हैं। पाटिल की थ्योरी आयुर्वेद पर आधारित है। वह कहते हैं, ‘आयुर्वेद के मुताबिक व्यक्ति में वात, पित्त और कफ से जुड़े तीन तरह के विकार होते हैं। इसी के आधार पर विकारों की सही पहचान कर असंतुलन को दूर करने और उपचार के लिए अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।’ दूसरी ओर मेहता पांच मूलभूत तत्वों यानी वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश के मुताबिक कलर एनर्जी की बात करती हैं।

यहां यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि कलर थैरेपी मूलत: कलर साइकोलॉजी से अलग है। जहां साइकोलॉजी दिमाग का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन की कला है, वहीं कलर थैरेपी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होती है, जिसके जरिए उसका उपचार होता है। हालांकि किसी भी क्षेत्र, चाहे वह एरोमा हो, म्यूजिक हो या फिर कलर, उससे जुड़े थैरेपिस्ट के लिए साइकोलॉजी का ज्ञान होना जरूरी है। 

कैसे बनें कलर थैरेपिस्ट?
जहां विदेशों में विश्वविद्यालय ऐसे कोर्स प्रस्तावित करते हैं, जिनके तहत छात्र कलर थैरेपी में डिप्लोमा या डिग्री हासिल कर सकते हैं, वहीं इस दिशा में भारत को अभी भी काफी कुछ करना बाकी है। पाटिल कहते हैं, ‘हालांकि कलर थैरेपी का नाम सुनकर आपको यह दिलचस्प कॅरियर विकल्प लग सकता है, लेकिन इसके लिए कोई औपचारिक शिक्षा या विश्वसनीय कोर्स नहीं है, जिसके जरिए आप कलर थैरेपिस्ट बनने की योग्यता हासिल कर सकें। 

वैसे जो व्यक्ति इसे पेशे के तौर पर अपनाना चाहते हैं उन्हें नेचुरोपैथी का पांच वर्षीय कोर्स जरूर कर लेना चाहिए और उसके बाद कलर थैरेपी की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।’ वहीं इस बारे में अमीषा मेहता कहती हैं, ‘कोई भी शख्स शोध और सतत अभ्यास के जरिए ही इसका विशेषज्ञ बन सकता है। थ्योरी के जरिए भी सीखा जा सकता है, लेकिन इस क्षेत्र में रिसर्च और प्रैक्टिकल नॉलेज का कोई जवाब नहीं है।’

बढ़ती लोकप्रियता
माना जाता है कि कलर थैरेपी के जरिए कई तरह की मानसिक व्याधियों के निदान में मदद मिल सकती है। आज यह थैरेपी कई क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही है। कई कारपोरेट कंपनियों की राय है कि खास तरह के माहौल में कर्मचारियों का प्रदर्शन बेहतर होता है। अस्पतालों व जेलों में भी क्रमश: मरीजों व कैदियों पर रंगों के प्रभाव को समझा जा रहा है। पेंट (रंगरोगन) कंपनियां भी रंगों के उपचारक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नए कलर कार्डस बाजार में पेश करने लगी हैं। इसी तरह कॉस्मेटिक कंपनियां अपने उत्पादों में ‘कलर थैरेपी’ रेंज को शामिल कर रही हैं।

उपचार तकनीक
कलर थैरेपी के जरिए दो तरीकों से मरीजों का उपचार किया जा सकता है।
  1. परोक्ष तकनीक- इसमें घी, तेल, रंगीन कपड़े जैसी ‘दवाइयों’ के जरिए मरीज का उपचार होता है। उसके कमरे में खास रंग का रंगरोगन या परदे, बेड शीट्स, तकिए के कवर और यहां तक कि रंगीन पानी का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा फुल-स्पेक्ट्रम लैंपों, स्पेशल फिल्टरों के जरिए कलर को मरीज की बॉडी पर प्रक्षेपित किया जाता है। मरीज को खास रंग की वस्तुएं भी दी जा सकती हैं, मसलन लाल रंग के लिए उसे रूबी पहनाया जा सकता है या सब्जियों में चुकंदर, गाजर दी जा सकती है।
  2. सहभागी तकनीक- इसमें व्यक्ति वास्तव में कलर/पेंट को महसूस करता है। कलर थैरेपी की इसी तकनीक का इस्तेमाल करने वाली मेहता इसे बेहद प्रभावी मानती हैं। उनका कहना है, ‘हालांकि इसमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि मरीज किसी खास रंग के संपर्क में ज्यादा देर तक न रहे, नहीं तो असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है। 
थैरेपी के दौरान मरीज एक सम्मोहक अनुभव से गुजरता है जो ऐरोमा और म्यूजिक थैरेपी के साथ पूर्ण होता है। व्यक्ति को रंग दे दिए जाते हैं और कहा जाता है कि वह इसके जरिए अपने दिल की भावनाओं को उकेरे।’ पिछले चार-पांच वर्र्षो से कलर थैरेपिस्ट के रूप में कार्यरत मेहता की राय है कि कलर थैरेपी को अन्य थैरेपी के साथ इस्तेमाल करना चाहिए। मेहता बताती हैं, ‘मेरी एक मरीज थी, जिसके शरीर में जन्म से ऐंठन होती थी। कलर थैरेपी की मदद से उसमें जबरदस्त सुधार हुआ। 

चाहे लोगों को प्रेरित करने की बात हो या उनके अंदर छिपी ऊर्जा को बाहर लाने की बात, कलर थैरेपी इसमें काफी कारगर है।’ आखिर में यही कहा जा सकता है कि रंगों के प्रभावों के बारे में समझने के साथ हमें इसके बारे में अपनी जानकारी लगातार बढ़ाते रहना चाहिए, ताकि हम प्रकृति के इस अनमोल उपहार से ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सकें। इस तरह रंगों की यह दुनिया सिर्फ थैरेपी तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि हमारे जीवन को समृद्ध बनाने का जरिया भी बन जाएगी।
  • कलर साइकोलॉजी में जहां व्यक्ति के मन का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जाता है, वहीं कलर थैरेपी एक अनुभवजन्य प्रक्रिया है जिसके जरिए मरीज में सुधार लाया जाता है। 
  • इंसान के शरीर में सात ‘चक्र’ होते हैं, जो इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह हैं। 
  • कलर एनर्जी प्रकृति के पांच तत्वों यानी वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल और लकड़ी के अनुरूप ही होती है।
  • कलर थैरेपी का इस्तेमाल अन्य थैरेपी के पूरक के तौर पर किया जाता है।