रिश्तों की जान संवेदना में होती है, लेकिन आज रिश्ते भी बोझ बन गए हैं। दुनियाभर का वजन लादे हम लोग रिश्तों का बोझ उठाने में थक से जाते हैं और जीवन बोझिल हो जाता है। मुस्लिम फकीर अबुल हसन खिरकानी जिंदगी में छोटी-छोटी चीजों को अलग ही नजरिए से देखते थे। उनकी बात ठीक से समझ लें तो जिंदगी के लिए बहुत बड़ा संदेश बन जाएगी।
उनकी बीवी बड़ी तुनक मिजाज थीं। एक दफा एक शख्स अबुल हसन के घर उनसे मिलने गए। उनकी बीवी से पूछा- शेख कहा हैं? मोहतरमा पलटकर बोलीं- तू ऐसे नाकाबिल और बुरे आदमी को शेख कहता है, हां, मेरा शौहर जरूर जंगल में लकड़ी लेने गया है। वो जनाब पति-पत्नी के रिश्ते की गरमाहट और बोझ को समझ गए और जंगल पहुंचे। देखा तो सकते में आ गए। अबुल हसन चले आ रहे हैं।
उनके साथ एक शेर है और उस पर लकड़ियों का बोझ रखा है। उन शख्स ने फरमाया- आपकी बीवी आपके बारे में कुछ और ही अल्फाज कह रही है और आप ये करिश्मा किए जा रहे हैं। इसके जवाब में हसन ने मुस्कराकर बड़ी गहरी बात कह दी- ‘सुनो मेरे भाई! यदि मैं अपनी बीवी की तुनकमिजाजी का बोझ न उठाऊं तो ये शेर मेरा बोझ क्यों उठाएगा?’ यदि रिश्ते बोझ बन ही जाएं तो फिर उन्हें ऐसे उठाएं कि कम से कम जिंदगी थोड़ी हल्की हो जाए। हमारा जीवन भी इन बातों की सच्चई से जुड़ा है। अगर हम रिश्तों के वजन को संवेदनशीलता से लें तो आसानी से जिया जा सकता है। अबुल हसन का जीवन ऐसे ही संदेश देता है, बस हमें इन्हें समझना है।
........ पं. विजयशंकर मेहता