दुनिया में हर चीज का एक तौर-तरीका होता है, रहने से कहने तक के तरीके इजाद हैं।
हर फरियाद या प्रार्थना की सफलता उसके कहने के अंदाज पर टिकी है। हम उस परमशक्ति से किस तरह अपनी बात कह रहे हैं, यह बात बहुत मायने रखती है।
अगर आपको अपनी बात भगवान तक पहुंचानी है तो इसका तरीका समझें। दुनियाभर से बात करने वाले हम लोग यह भूल ही जाते हैं कि जिसने दुनिया बनाई है उससे बात करने का भी एक तरीका होता है।
ऊपर वाले से संवाद करिए, जिन्दगी के कई सवालों का जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा।
राबिआ नामक महिला फकीर का खुदा से बात करने का अंदाज ही निराला था। वे एक हजार नमाज रोज पढ़ती थीं। उनके लिए इबादत परवरदिगार से सीधी बातचीत थी। राबिआ के मां-बाप का इन्तकाल होने के कारण उन्हें किसी ने गुलाम बना लिया था।
गुलामी के दिनों में वे रात को सिज्दे में खुदा से आंसू भरी निगाहों के साथ बोलीं- ऐ मालिक आपने मुझे दूसरे की मिल्कियत बना दिया। सख्त खिदमत अपने मालिक की करना पड़ती है, उससे एतराज नहीं है लेकिन इसी कारण तेरे दरबार में आने का वक्त नहीं मिलता।
काश मैं आजाद होती तो लम्हा-लम्हा आपकी ही इबादत में बिताती, जैसी आपकी मर्जी। राबिआ की यह बातचीत एक दिन इत्तेफाक से उस शख्स ने सुन ली जिसकी राबिआ गुलाम थी।
उसने देखा-सुना कि लड़की सिज्दे में है और खुदा से बड़े सलीके से बात कर रही है। उसे एहसास हुआ कि किसी पाक शख्सीयत को मैंने गुलाम बना डाला है, अगली सुबह उसने माफी भी मांगी और राबिआ को आजाद भी कर दिया।
यह किस्सा इस बात का भरोसा दिलाता है कि ऊपर वाला सुनता है और अपने तरीके से उस सुनी हुई मांग, पुकार को पूरा भी करता है। बस, उससे बात करना आना चाहिए, उससे कह दो अपनी परेशानी, फिर सब्र करो उसकी मदद के अंदाज पर।
हर फरियाद या प्रार्थना की सफलता उसके कहने के अंदाज पर टिकी है। हम उस परमशक्ति से किस तरह अपनी बात कह रहे हैं, यह बात बहुत मायने रखती है।
अगर आपको अपनी बात भगवान तक पहुंचानी है तो इसका तरीका समझें। दुनियाभर से बात करने वाले हम लोग यह भूल ही जाते हैं कि जिसने दुनिया बनाई है उससे बात करने का भी एक तरीका होता है।
ऊपर वाले से संवाद करिए, जिन्दगी के कई सवालों का जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा।
राबिआ नामक महिला फकीर का खुदा से बात करने का अंदाज ही निराला था। वे एक हजार नमाज रोज पढ़ती थीं। उनके लिए इबादत परवरदिगार से सीधी बातचीत थी। राबिआ के मां-बाप का इन्तकाल होने के कारण उन्हें किसी ने गुलाम बना लिया था।
गुलामी के दिनों में वे रात को सिज्दे में खुदा से आंसू भरी निगाहों के साथ बोलीं- ऐ मालिक आपने मुझे दूसरे की मिल्कियत बना दिया। सख्त खिदमत अपने मालिक की करना पड़ती है, उससे एतराज नहीं है लेकिन इसी कारण तेरे दरबार में आने का वक्त नहीं मिलता।
काश मैं आजाद होती तो लम्हा-लम्हा आपकी ही इबादत में बिताती, जैसी आपकी मर्जी। राबिआ की यह बातचीत एक दिन इत्तेफाक से उस शख्स ने सुन ली जिसकी राबिआ गुलाम थी।
उसने देखा-सुना कि लड़की सिज्दे में है और खुदा से बड़े सलीके से बात कर रही है। उसे एहसास हुआ कि किसी पाक शख्सीयत को मैंने गुलाम बना डाला है, अगली सुबह उसने माफी भी मांगी और राबिआ को आजाद भी कर दिया।
यह किस्सा इस बात का भरोसा दिलाता है कि ऊपर वाला सुनता है और अपने तरीके से उस सुनी हुई मांग, पुकार को पूरा भी करता है। बस, उससे बात करना आना चाहिए, उससे कह दो अपनी परेशानी, फिर सब्र करो उसकी मदद के अंदाज पर।