थोडा अश्लीलता से परे जा कर सोचे

दिल्ली में पिछले हफ्ते तीन रेस्त्रां पर छापे मार कर ‘अश्लील’ कर्म में लिप्त युवाओं को धरा गया। इस घटना की समूचे मीडिया में जबरदस्त भत्र्सना हुई है, लेकिन इसके समाजशास्त्रीय पक्ष पर ध्यान देने की किसी ने जरूरत नहीं समझी। यह बहुत संभव है कि इन ठिकानों से किसी किस्म का सेक्स रैकेट चल रहा हो, जिसे सामने आना भी चाहिए था। लेकिन दिल्ली के कुछ बड़े पार्को में आप जाएं, तो वहां भी इस किस्म की ‘अश्लील’ हरकतें करते जोड़े मिल जाएंगे। 

असल समस्या दो स्तरों पर है। पहली, ‘अश्लीलता’ की हमारी परिभाषा को लेकर और दूसरी, निजी जगहों की कमी से जुड़ी हुई। जाहिर है, कोई भी युवा अगर प्रेम करता है, तो इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। लेकिन प्रेम की किसी भी अभिव्यक्ति के लिए हमारे समाज में न सिर्फ सार्वजनिक, बल्कि निजी स्थलों की दिनोंदिन कमी होती जा रही है। 

यह समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता और असहिष्णुता का संकेत है। एक ओर सरकार कंडोम और गर्भनिरोधक का सार्वजनिक विज्ञापन करते नहीं थकती, दूसरी ओर हमारे यहां ऐसी जगहें खत्म होती जा रही हैं, जहां कोई जोड़ा चैन से बैठ सके।