तेज विकास के साथ झेलनी होगी महंगाई की तपिश

नई दिल्ली रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान अर्थव्यवस्था की दशा व दिशा पर जो आकलन पेश किया है, उसमें एक अच्छी बात है तो एक चिंताजनक। अच्छा यह है कि हर हाल में इस वर्ष आर्थिक विकास दर पिछले वित्त वर्ष से बेहतर रहने वाली है। चिंताजनक पहलू यह है कि सारे प्रयासों के बावजूद महंगाई की स्थिति बीते वित्त वर्ष से ज्यादा बिगड़ सकती है। हर वित्त वर्ष की शुरुआत में अर्थ जगत से जुड़ी तमाम एजेंसियों के बीच अध्ययन के आधार पर रिजर्व बैंक यह सर्वेक्षण करता है। केंद्रीय बैंक पिछले तीन वर्षो से यह आकलन कर रहा है और हर वर्ष यह बेहद सटीक बैठता है। सर्वेक्षण में शामिल एजेंसियों के आधार पर रिजर्व बैंक का आकलन है कि वर्ष 2010-11 में आर्थिक विकास दर औसतन 8.3 फीसदी के करीब रहने की संभावना है। यह विभिन्न एजेंसियों के अनुमान का औसत है। इस बार मानसून के सामान्य रहने के संकेत का असर इस सर्वेक्षण पर भी दिखाई पड़ता है। कृषि क्षेत्र की स्थिति जहां पिछले वित्त वर्ष के दौरान खस्ताहाल रही थी, वहीं इस वर्ष कृषि क्षेत्र की विकास दर के चार फीसदी के आसपास रहने के आसार हैं। कृषि क्षेत्र में अधिकतम 5.8 और न्यूनतम दो फीसदी की वृद्धि होने के अनुमान हैं। इसी तरह से औद्योगिक विकास दर के औसतन 9.1 और सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर के 9 फीसदी रहने का अनुमान है। राजकोषीय घाटे की स्थिति सुधारने के लिए सरकार तमाम प्रयास कर रही है और अगले वित्त वर्ष इसमें कमी करने की कोशिश भी जारी है। लेकिन रिजर्व बैंक का यह सर्वेक्षण सरकार के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता। सर्वेक्षण के मुताबिक सकल राजकोषीय घाटा वर्ष के अंत तक 8.6 फीसदी रहने के अनुमान है। इसी तरह से बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार का औसत 19.6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। सर्वेक्षण साफ करता है कि महंगाई को लेकर पहले जो आशंकाएं थीं, वे दिनोदिन और मजबूत हुई हैं। अच्छे मानसून और खाद्य उत्पादों की आपूर्ति बेहतर होने के बावजूद महंगाई की स्थिति पहले से बिगड़ने की संभावना जताई गई है। इसके पहले वाले सर्वे में महंगाई की दर के 7.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था, जबकि इस बार इसके 9.5 फीसदी पहुंच जाने के आसार हैं। हालांकि इसके बावजूद सर्वेक्षण में शामिल होने वाले यह मान रहे हैं कि वर्ष के अंत तक महंगाई की दर मौजूदा स्तर के आसपास ही रहेगी।